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December 18, 2024

मेनोपॉज अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।

मेनोपॉज अंत नहीं, बल्कि है एक नई शुरुआत

मेनोपॉज महिलाओं के जीवन में एक स्वाभाविक जैविक बदलाव है, जो उनके प्रजनन काल के अंत को दर्शाता है। यह कोई बीमारी नहीं है, लेकिन इसके साथ होने वाले हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन कई स्वास्थ्य चुनौतियों को जन्म दे सकते हैं। ऐसे में महिलाओं के लिए यह समझना आवश्यक है कि कैसे इन बदलावों को प्रबंधित कर एक स्वस्थ और पूर्ण जीवन जिया जा सकता है। 


मेनोपॉज आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की आयु के बीच होता है, जिसमें अंडाशयों की कार्य क्षमता में गिरावट के कारण मासिक चक्र समाप्त हो जाता है। इस दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे महत्वपूर्ण हार्मोनों का स्तर गिर जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हॉट फ्लैश, रात में पसीना आना, मूड स्विंग, थकान और नींद की समस्या जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। 

 

इसके अलावा, एस्ट्रोजन के स्तर में कमी से हड्डियों की ताकत कम हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है। वहीं, हृदय स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है क्योंकि एस्ट्रोजन दिल की बीमारियों से बचाव करता है। इस दौरान वजन बढ़ना, मेटाबॉलिक परिवर्तन, डायबिटीज और हाइपरटेंशन का खतरा भी बढ़ जाता है। 

 

न्यूबेला सेंटर फॉर विमेंस हेल्थ की, निदेशक डॉ. गीता श्रॉफ ने बताया कि मेनोपॉज की चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव, नियमित चिकित्सा देखभाल और भावनात्मक समर्थन महत्वपूर्ण हैं। संतुलित आहार, जिसमें कैल्शियम, विटामिन डी और प्रोटीन शामिल हों, हड्डियों को मजबूत करता है, जबकि सब्जियां, फल, साबुत अनाज और स्वस्थ वसा हृदय स्वास्थ्य और वजन प्रबंधन में मददगार होते हैं। नियमित व्यायाम जैसे वॉकिंग, योग और वेट बियरिंग एक्सरसाइज न केवल हड्डियों को मजबूत करते हैं बल्कि मेटाबॉलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं। 

 

पर्याप्त पानी का सेवन हॉट फ्लैश पर नियंत्रण और त्वचा की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होता है। इसके अलावा, मेनोपॉज के बाद ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए नियमित स्वास्थ्य जांच, जैसे हड्डी घनत्व परीक्षण, लिपिड प्रोफाइल और ब्लड शुगर मॉनिटरिंग आवश्यक हैं ताकि इन समस्याओं का समय रहते प्रबंधन किया जा सके। 

 

डॉ. गीता ने आगे बताया कि मेनोपॉज़ अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। यह जीवन के उस दौर का प्रतीक है जब महिलाएं खुद को प्राथमिकता दे सकती हैं और अपने स्वास्थ्य को नए सिरे से परिभाषित कर सकती हैं। सही जानकारी, संतुलित जीवनशैली और विशेषज्ञों की मदद से महिलाएं इस बदलाव को आत्मविश्वास के साथ अपना सकती हैं। 

 

मेनोपॉज को आत्मनिर्भरता, जागरूकता और सशक्तिकरण के अवसर के रूप में अपनाकर महिलाएं एक खुशहाल और रोग-मुक्त जीवन का आनंद ले सकती हैं।

December 17, 2024

क्या सर्दियों की ठंड आपके मूड को प्रभावित कर रही है?

क्या सर्दियों की ठंड आपके मूड को प्रभावित कर रही है?
 

सर्दियों के आगमन के साथ ही जहां एक ओर ठंडी हवा और त्योहारों की खुशी का माहौल होता है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के लिए यह मौसम, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां लेकर आता है। सैड, जो आमतौर पर सर्दियों के महीनों में होता है, एक प्रकार का अवसाद है जो दुनिया भर में कई लोगों को प्रभावित करता है।  


सर्दियों के दौरान दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं, जिससे प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश का संपर्क कम हो जाता है। ये परिवर्तन शरीर की जैविक घड़ी (सर्केडियन रिदम) को बाधित कर सकते हैं, जिससे मनोभाव और ऊर्जा स्तर में गिरावट सकती है। सैड की विशेषता है कि यह हर वर्ष एक विशेष मौसम, मुख्यतः सर्दियों, में अवसाद के लक्षणों के साथ प्रकट होता है। मौसमी भावात्मक विकार के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, तुलसी हेल्थकेयर के निदेशक और प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. गोरव गुप्ता ने बताया कि सैड से पीड़ित व्यक्ति अक्सर लगातार उदासी, गतिविधियों में रुचि को कमी, नींद की आदतों में बदलाव, अत्यधिक थकान, एकाग्रता में कठिनाई और भूख में बदलाव जैसी समस्याओं से जूझते हैं।  


हालांकि, इन लक्षणों को प्रमुख अवसाद विकार से मिलता-जुलता माना जा सकता है, लेकिन सैड के मामले में ये लक्षण मौसमी होते हैं और वसंत के आगमन के साथ कम हो जाते हैं। सैड के सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन यह माना जाता है कि सूर्य के प्रकाश की कमी शरीर की सर्केडियन रिदम और सेरोटोनिन और मेलाटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के असंतुलन को प्रभावित करती है। साथ ही, आनुवंशिक कारक, हार्मोनल बदलाव और पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां इसके जोखिम को बढ़ा सकती हैं। जो लोग पेशेवर मदद चाहते हैं, उनके लिए साइकोथेरेपी, विशेषकर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT), सैड के इलाज में प्रभावी है। यह नकारात्मक विचारों को पहचानने और उन्हें बदलने के लिए व्यक्ति को सशक्त बनाता है। गंभीर मामलों में, जहां लक्षण दैनिक कार्यक्षमता को बाधित करते हैं, वहां एंटीडिप्रेसेंट जैसी दवाइयां सुझाई जा सकती हैं।  


उचित उपचार के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लेना महत्वपूर्ण है। डॉ. गोरव ने आगे बताया कि सैड के लक्षणों को प्रबंधित करने और सर्दियों के महीनों को सकारात्मक रूप से अपनाने के लिए कुछ प्रभावी उपायों में लाइट थेरेपी, बाहरी गतिविधियां, शारीरिक व्यायाम और माइंड-बॉडी प्रैक्टिस शामिल हैं। लाइट थेरेपी उज्ज्वल प्रकाश के संपर्क से सर्केडियन रिदम को संतुलित करती है और लक्षणों को कम करने में मददगार होती है। ठंड के बावजूद दिन के समय बाहर समय बिताने से प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश के जरिए सेरोटोनिन का उत्पादन बढ़ता है, जो मनोदशा सुधारने में सहायक होता है।  


December 13, 2024

मोटापा और उससे जुड़ी समस्याओं का बैरिएट्रिक सर्जरी से दीर्घकालिक समाधान

मोटापा और उससे जुड़ी समस्याओं का बैरिएट्रिक सर्जरी से दीर्घकालिक समाधान

बहादुरगढ़ : मोटापा आजकल एक ऐसी समस्या बन चुकी है, जो कई गंभीर और घातक बीमारियों को जन्म देती है। भारत दुनिया में मोटापे के मामले में तीसरे स्थान पर है, अमेरिका और चीन के बाद। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, नींद संबंधी विकार, जोड़ों का दर्द, पीठ दर्द, उच्च कोलेस्ट्रॉल, फैटी लीवर, थायरॉयड विकार, पीसीओडी, बांझपन और कैंसर जैसी बीमारियां मोटापे से जुड़ी होती हैं।

 

बैरिएट्रिक सर्जरी वजन घटाने का एक प्रभावी तरीका है, जिसमें पेट के आकार को छोटा करना या आंतों के कुछ हिस्सों को बाईपास करके कैलोरी अवशोषण को नियंत्रित किया जाता है। यह प्रक्रिया केवल भोजन की खपत को सीमित करती है, बल्कि शरीर के मेटाबोलिज्म में भी बदलाव लाती है, जिससे मोटापे से जुड़ी बीमारियों में सुधार होता है।

 

मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, मिनिमल एक्सेस और बैरिएट्रिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अरुण भारद्वाज का कहना है, "मोटापा केवल वजन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। बैरिएट्रिक सर्जरी ने वजन कम करने और मोटापे से संबंधित समस्याओं को नियंत्रित करने में दीर्घकालिक सफलता प्रदान की है। यह सर्जरी केवल वजन घटाने में मदद करती है, बल्कि डायबिटीज, फैटी लीवर, नींद के विकार, गठिया और थायरॉयड विकार जैसी समस्याओं को भी प्रभावी रूप से सुधारती है। भारत में सबसे सामान्य बैरिएट्रिक प्रक्रियाओं में स्लीव गैस्ट्रेक्टॉमी, गैस्ट्रिक बाईपास और मिनी-गैस्ट्रिक बाईपास शामिल हैं। ये प्रक्रियाएं लैप्रोस्कोपिक और रोबोटिक तकनीक से की जाती हैं। इसके अलावा, इंट्रागैस्ट्रिक बैलून जैसी गैर-सर्जिकल प्रक्रियाएं भी उपलब्ध हैं, जिन्हें ओपीडी में किया जा सकता है।

 

हालांकि, यह समझना जरूरी है कि बैरिएट्रिक सर्जरी अन्य आम सर्जिकल प्रक्रियाओं जैसे पित्ताशय की पथरी या हर्निया ऑपरेशन जितनी ही सुरक्षित है। फिर भी, इसे एक बहु-आयामी दृष्टिकोण के तहत किया जाना चाहिए, जिसमें सर्जरी से पहले व्यापक स्वास्थ्य मूल्यांकन और रोगी का सही तरीके से अनुकूलन शामिल हो।

 

सफलता की दर व्यक्ति की जीवनशैली और प्रक्रिया के बाद डॉक्टर द्वारा सुझाई गई डाइट और व्यायाम पर निर्भर करती है। अधिकतर लोग बैरिएट्रिक सर्जरी के बाद दीर्घकालिक वजन घटाने और जीवनशैली में सुधार का अनुभव करते हैं। डॉ. भारद्वाज ने यह भी बताया, "यह सर्जरी एक साधन है, लेकिन सफलता का वास्तविक मापदंड आपकी जीवनशैली में बदलाव और मोटिवेशन है। सर्जरी के बाद स्वस्थ भोजन, नियमित व्यायाम और परिवार दोस्तों का सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है।"

 

मोटापे से निपटने के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी एक दीर्घकालिक समाधान साबित हो सकती है। सही विकल्प चुनने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेना और सर्जरी के बाद स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना अनिवार्य है।