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December 28, 2024

Cold Weather and Cardiac Care

Cold Weather and Cardiac Care

 By: Dr. Pankaj Ranjan

The drop in temperatures during winter isn’t just a concern for comfort—it can pose significant risks for heart health. Cold weather brings physiological changes that put extra strain on the heart, increasing the likelihood of heart attacks and other cardiac events. Understanding how winter impacts cardiovascular health and taking preventive steps can help safeguard your heart during this challenging season.

 

How Cold Weather Affects the Heart

One of the most significant impacts of cold weather is vasoconstriction—a natural process where blood vessels narrow to conserve heat. This constriction raises blood pressure, forcing the heart to work harder to pump blood through the body. For individuals with pre-existing hypertension or cardiovascular disease, this added strain can lead to severe complications such as heart attacks or strokes. 


In addition to raising blood pressure, cold weather can also increase the activity of platelets in the blood. Platelets are responsible for clotting, and their heightened activity in the cold raises the risk of arterial blockages. For individuals with partially blocked arteries, this can create a dangerous situation, leading to sudden cardiac events.

 

The Role of Physical Activity in Winter Risks

Activities in the winter, like brisk outdoor walks, can further increase the risk of heart issues. The combination of cold air and physical exertion can cause sudden spikes in blood pressure, placing excessive strain on the heart. Cold air inhaled during exertion can also constrict the airways, making it harder for the heart to pump oxygenated blood effectively.

 

Respiratory Infections and Heart Health

The colder months often bring a rise in respiratory infections like the flu and pneumonia, which can exacerbate cardiovascular risks. These infections cause systemic inflammation, destabilizing arterial plaques and increasing the likelihood of heart attacks. Individuals with existing heart conditions or weakened immune systems are particularly vulnerable during this time. 


Furthermore, poor air quality during winter, resulting from the burning of wood for heating, adds to the cardiovascular strain. Exposure to pollutants like particulate matter can inflame blood vessels and elevate the risk of both heart and respiratory complications.

 

Who Is Most at Risk?

While winter poses risks for everyone, certain groups are particularly vulnerable. Older adults face greater challenges due to reduced cardiovascular adaptability and a diminished ability to regulate body temperature. Smokers, diabetics, and individuals with coronary artery disease are also at higher risk. For these groups, even minor triggers can escalate into serious cardiac events.

 

Preventing Winter Cardiac Issues

Protecting heart health during winter starts with staying warm. Wearing layered clothing and using scarves or masks to cover your nose and mouth can help reduce exposure to cold air. Keeping your home heated to a comfortable temperature is equally important. 


Avoiding overexertion is crucial. If you must engage in such activities, take frequent breaks, stay hydrated, and dress warmly. Regular monitoring of blood pressure and strict adherence to prescribed medications can help mitigate risks. 


Vaccination against flu and pneumonia is another essential preventive measure. By reducing the likelihood of infections, you also lower the risk of cardiac complications associated with inflammation. 


Winter doesn’t have to be a dangerous season for heart health. By understanding how cold weather impacts the cardiovascular system and taking proactive steps, you can minimize risks and maintain a healthy heart. With the right precautions, winter can be a season of joy and warmth rather than a period of health concerns.

 

(The writer is a Head of Department & Senior Consultant – Cardiology, Yatharth Hospital, Greater Noida)

December 26, 2024

इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी (ईपीएस) और रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (आरएफऐ): आधुनिक हृदय रोग चिकित्सा में क्रांतिकारी कदम

इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी (ईपीएस) और रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (आरएफऐ): आधुनिक हृदय रोग चिकित्सा में क्रांतिकारी कदम

मेरठ: इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी (ईपीएस) और रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन (आरएफऐ) आधुनिक कार्डियोलॉजी में अत्यंत महत्वपूर्ण नैदानिक और उपचारात्मक प्रक्रियाएं हैं, जो अनियमित हृदय गति (एरिथमिया) की पहचान और उपचार में अहम भूमिका निभाती हैं। ये तकनीकें उन स्थितियों के समाधान में क्रांतिकारी सिद्ध हुई हैं, जिन्हें पहले पहचानना और इलाज करना बेहद कठिन था।

 

इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी एक न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया है, जिसमें इलेक्ट्रोड वाले कैथेटर के माध्यम से हृदय की विद्युत गतिविधि का परीक्षण किया जाता है। यह प्रक्रिया अनियमित हृदय गति का स्रोत और सही स्थान पता लगाने में मदद करती है। रेडियोफ्रीक्वेंसी एब्लेशन ईपीएस के बाद की जाने वाली उपचार प्रक्रिया है, जिसमें रेडियोफ्रीक्वेंसी वेव्स से उत्पन्न गर्मी के जरिए हृदय के उस भाग को नष्ट किया जाता है, जहां से अनियमित विद्युत संकेत उत्पन्न हो रहे होते हैं।

 

बीएलके-मैक्स हार्ट और वास्कुलर इंस्टीट्यूट के चेयरमैन और एचओडी डॉ. टी. एस. क्लेर ने कहाईपीएस का उपयोग मुख्य रूप से एरिथमिया का प्रकार और स्रोत जानने, अचानक हृदयगति रुकने (सडन कार्डियक डेथ) के जोखिम का आकलन करने, सही उपचार विकल्प तय करने (जैसे दवा, पेसमेकर या एब्लेशन थेरेपी) और पूर्व उपचार की सफलता की जांच करने के लिए किया जाता है। वहीं, आरएफऐ का उपयोग स्थायी रूप से एरिथमिया को ठीक करने, लक्षणों को कम करने, स्ट्रोक के जोखिम को घटाने और जीवनभर की दवा निर्भरता को समाप्त करने में किया जाता है।

 

ईपीएस और आरएफऐ उन मरीजों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद हैं, जो तेज या अनियमित धड़कन (पल्पिटेशन), बेहोशी, चक्कर आना, सांस फूलना, थकावट, सीने में दर्द जैसे लक्षणों का अनुभव करते हैं या अचानक कार्डियक अरेस्ट की स्थिति से गुजरे हों। ये अत्याधुनिक प्रक्रियाएं केवल एरिथमिया के इन लक्षणों को कम करती हैं, बल्कि मरीजों की जीवन गुणवत्ता को बेहतर बनाते हुए दीर्घकालिक समाधान प्रदान करती हैं।

 

डॉ. क्लेर ने आगे कहाईपीएस और आरएफऐ जैसे अत्याधुनिक उपचार उच्च सफलता दर और न्यूनतम जोखिम के साथ मरीजों की गुणवत्ता जीवन में सुधार लाते हैं। तकनीकी प्रगति के साथ, आने वाले समय में इन प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता और सुरक्षा और बेहतर होने की उम्मीद है। एरिथमिया के लक्षणों से जूझ रहे मरीजों को जल्द से जल्द हृदय विशेषज्ञ या इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट से संपर्क कर इन प्रक्रियाओं की आवश्यकता पर विचार करना चाहिए।

 

इन प्रक्रियाओं को पारॉक्सिज्मल सुप्रावेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया, एट्रियल फिब्रिलेशन, एट्रियल फ्लटर, वेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया और वोल्फ-पार्किंसन-व्हाइट (WPW) सिंड्रोम जैसे विशेष एरिथमिया स्थितियों में अत्यधिक उपयोगी माना गया है।

8 घंटे की मैराथन सर्जरी कर निकाला गया ओवेरियन ट्यूमर, मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में 49 वर्षीय मरीज का सफल इलाज

8 घंटे की मैराथन सर्जरी कर निकाला गया ओवेरियन ट्यूमर, मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में 49 वर्षीय मरीज का सफल इलाज

सोनीपत, 26 दिसंबर 2024: मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल शालीमार बाग (नई दिल्ली) के डॉक्टरों ने 8 घंटे की मैराथन सर्जरी के जरिए 49 वर्षीय मरीज से 26*15 सेमी साइज और 5.5 किलो का रिकरेंट ग्रैनुलोसा सेल ट्यूमर निकाला. इस सफल सर्जरी से मरीज को एक नया जीवन मिला. मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में ऑन्कोलॉजी विभाग के एचओडी और वाइस चेयरमैन और रोबोटिक सर्जरी चीफ डॉक्टर सुरेंद्र डबास के नेतृत्व में ये सर्जरी की गई. डॉक्टर डबास के साथ मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के डायरेक्टर डॉक्टर पंकज कुमार पांडे और सर्जिकल गायनेकोलॉजी की कंसल्टेंट डॉक्टर अलका दहिया रहे.


मरीज की बेहद जटिल मेडिकल हिस्ट्री थी. 2019 में अपने होमटाउन में इसी समस्या के लिए उनकी पहली सर्जरी हुई थी, लेकिन पिछले एक साल से मरीज को पेट दर्द, फैलाव, सूजन की समस्या थी. साथ ही एब्डोमिनल मास भी नोटिस में आने जितना हो गया था. पिछले 6-7 महीनों में कई अस्पतालों में दिखाने, कई कीमोथेरेपी साइकिल्स, बायोप्सी के बावजूद मरीज को कोई ठोस समाधान नहीं मिल पा रहा था.


इसके बाद मरीज ने मैक्स अस्पताल शालीमार बाग का रुख किया. पूरी तरह से जांच-पड़ताल करने पर इमेजिंग में एक बड़े ठोस मास का पता चला जो पेल्विक एरिया को चपेट में लिए हुए था और पेट के ऊपरी हिस्से तक जा रहा था. आंत्र और मूत्राशय में भी इसके फैलने की आशंका थी. इस दुर्लभ और जटिल स्थिति ने ट्यूमर के आकार, स्थान और पहली सर्जरी होने के कारण कई तरह की चुनौतियां थीं, जिसके लिए एक बेहद एक्सपर्ट सर्जिकल टीम की आवश्यकता थी.


मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में ऑन्कोलॉजी विभाग के एचओडी और वाइस चेयरमैन और रोबोटिक सर्जरी चीफ डॉक्टर सुरेंद्र डबास ने इस केस की चुनौतियों में बारे में जानकारी देते हुए कहा, ''मल्टी डिसिप्लिनरी टीम ने मरीज की बेहतर रिकवरी और दीर्घकालिक प्रोग्नोसिस सुनिश्चित करने के लिए ट्यूमर हटाने के लिए सर्जरी की बात पर जोर दिया. पूरी तरह से प्रीऑपरेटिव आकलन और एनेस्थीसिया क्लीयरेंस के बाद ट्यूमर हटाने की सर्जरी की गई. सर्जरी 7-8 घंटे तक चली. ट्यूमर आसपास के अंगों से घिरा था, इसके बावजूद ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटा दिया गया.'


मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में सर्जिकल गायनेकोलॉजी की कंसल्टेंट डॉक्टर अलका दहिया ने बताया, ''मरीज के लिए बेहतर रिजल्ट लाने के लिए व्यक्तिगत तौर पर मरीज की देखभाल और एक्सपर्ट सर्जिकल टीम की भूमिका काफी अहम होती है. मरीज को लंबे समय तक राहत देने के लिए ट्यूमर को पूरी तरह से निकालना ही महत्वपूर्ण होता है और इस केस में भी सर्जरी के दौरान यही फॉलो किया गया.''


मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के सीनियर डायरेक्टर डॉक्टर सज्जन राजपुरोहित ने कहा, ''सर्जरी के बाद मरीज ने बहुत अच्छी रिकवरी की और 7वें दिन अच्छी कंडीशन मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया. वो इसके बाद फॉलो-अप पर आती रहीं और उनकी कंडीशन को बेहतर करने के लिए टीम ने हार्मोन थेरेपी पर रखा. अभी वो स्वस्थ और खुश हैं, धीरे-धीरे नॉर्मल हो रही हैं.''


कैंसर के इलाज के मामले में मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग अगली पंक्ति में शुमार है. यहां द विंची रोबोट, रेडिजैक्ट X9 टोमोथेरेपी, ट्रू-बीम लीनियर एक्सेलरेटर जैसी शानदार टेक्नोलॉजी हैं और रेडिएशन ऑन्कोलॉजिस्ट डॉक्टर राजेंद्र कुमार जैसे विशेषज्ञों की टीम है. यहां प्रिसाइज रेडिएशन ट्रीटमेंट भी मुहैया कराया जाता है. हमारा मकसद कैंसर को सटीक अंदाज में टारगेट करना है ताकि रेडिएशन के साइड इफेक्ट कम से कम हों.

December 22, 2024

कब करें न्यूरोसर्जन से परामर्श? मस्तिष्क समस्याओं के संकेत और उपाय

 

कब करें न्यूरोसर्जन से परामर्श? मस्तिष्क समस्याओं के संकेत और उपाय
हमारी व्यस्त और तनावपूर्ण जीवनशैली में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को नज़रअंदाज़ करना आम बात है, खासकर जब करियर प्राथमिकता बन जाता है। लेकिन कुछ लक्षणों को पहचानना और समय पर विशेषज्ञ से सलाह लेना बेहद ज़रूरी है। यदि आप या आपका कोई परिचित निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, तो तुरंत न्यूरोसर्जन से परामर्श करें।  

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल साकेत में न्यूरोसर्जरी विभाग के एसोसिएट डायरेक्टर डॉक्टर कपिल जैन ने बताया कि “यदि सिरदर्द समय के साथ बढ़ता जाए, दवाओं से ठीक न हो, या इसके साथ उल्टी और दृष्टि संबंधी समस्याएं हों, तो यह गंभीर हो सकता है। इसी तरह, हाथ-पैरों में कमजोरी, बोलने में कठिनाई, स्मृति कमजोर होना, या व्यवहार में बदलाव जैसे न्यूरोलॉजिकल लक्षणों को अनदेखा नहीं करना चाहिए। अचानक चेहरे का असमान दिखना, सुनने में परेशानी के साथ या बिना, चेहरे से जुड़े लक्षणों की भी तुरंत जांच जरूरी है। चलने-फिरने, खाने या लिखने में कठिनाई, या संतुलन संबंधी समस्याएं भी चिंता का कारण हो सकती हैं। साथ ही, अंगों की अनियंत्रित हरकतें, मिर्गी जैसे लक्षण, या बेहोशी होने पर तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क करना आवश्यक है।  


डॉक्टर कपिल ने आगे बताया कि “मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के लिए निदान और इलाज की प्रक्रिया में सबसे पहला कदम न्यूरोसर्जन से परामर्श करना है। विशेषज्ञ आपके लक्षणों का गहन आकलन करेंगे, आपकी मेडिकल हिस्ट्री की समीक्षा करेंगे और आवश्यक न्यूरोलॉजिकल परीक्षण करेंगे। इसके बाद, सीटी स्कैन या एमआरआई जैसे इमेजिंग टेस्ट का उपयोग करके मस्तिष्क की विस्तृत जांच की जाएगी। जांच के परिणामों के आधार पर उपचार योजना बनाई जाएगी, जिसमें दवाओं का उपयोग, सर्जरी या अन्य आधुनिक तकनीकों को शामिल किया जा सकता है।  


मैक्स स्मार्ट सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में न्यूनतम इनवेसिव माइक्रो न्यूरोसर्जरी और ब्रेन ट्यूमर जैसी समस्याओं के लिए एंडोस्कोपिक सर्जरी जैसी अत्याधुनिक सुविधाएं उपलब्ध हैं। लक्षणों को गंभीरता से लेना और समय पर चिकित्सा सलाह लेना इलाज की सफलता और बेहतर परिणामों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। समुदाय से जुड़े कार्यक्रम के तहत, डॉ. कपिल जैन हर महीने के पहले रविवार को बिजनौर में ओपीडी सेवाएं प्रदान करते हैं।

December 21, 2024

यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा, आईएमए, मुजफ्फरनगर के साथ मिलकर जागरूकता सत्र का सफल आयोजन

यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा, आईएमए, मुजफ्फरनगर के साथ मिलकर जागरूकता सत्र का सफल आयोजन
  

मुजफ्फरनगर: यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), मुजफ्फरनगर के सहयोग से एक जागरूकता सत्र का आयोजन किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य चिकित्सा क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों और नवाचारों के बारे में जानकारी साझा करना था। यह सत्र आईएमए मुजफ्फरनगर में आयोजित किया गया, जिसमें कई प्रतिष्ठित डॉक्टरों और आईएमए के वरिष्ठ सदस्यों ने भाग लिया। 

 

इस कार्यक्रम का उद्घाटन, आईएमए मुजफ्फरनगर के अध्यक्ष डॉ. सुनील चौधरी, सचिव डॉ. मनोज काबरा और कोषाध्यक्ष डॉ. ईश्वर चंद्र के साथ किया। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ताओं में यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा के कार्डियोथोरासिक और वस्कुलर सर्जरी विभाग के निदेशक एवं हेड डॉ. अखिल कुमार रुस्तगी और सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट और एचओडी डॉ. परवीन मैंदीरत्ता, और किडनी प्रत्यारोपण एवं रोबोटिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. विपिन सिसोदिया शामिल थे। 

 

यथार्थ ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के असिस्टेंट मेडिकल डायरेक्टर डॉ. सुनील कुमार बलियां ने कहा कि “यथार्थ ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स में दा विंची रोबोटिक्स जैसी अत्याधुनिक तकनीक की शुरुआत के साथ, हम कार्डिएक सर्जरी को नए आयाम तक पहुंचा रहे हैं और विभिन्न विशेषताओं में मिनिमली इनवेसिव प्रक्रियाओं का दायरा बढ़ा रहे हैं। ये नवाचार न केवल सर्जरी की सटीकता को बढ़ाते हैं, बल्कि तेजी से स्वस्थ होने और बेहतर परिणाम सुनिश्चित करते हैं, जिससे विश्वस्तरीय चिकित्सा सेवाएं अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाई जा सकें। 

 

यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा के कार्डियोथोरासिक और वस्कुलर सर्जरी विभाग के निदेशक एवं हेड डॉ. अखिल कुमार रुस्तगी ने दिल की सर्जरी में हालिया प्रगति के बारे में बताते हुए कहा, “कार्डियक विज्ञान में हाल की प्रगति हृदय रोगों के उपचार को क्रांतिकारी बना रही है, जिससे मरीजों को नई आशा मिल रही है। टीएवीआई, मित्राक्लिप और क्रायोएब्लेशन जैसी नवाचार प्रक्रियाएँ हार्ट वाल्व रिपेयर और हार्ट रिदम सुधारने में मदद कर रही हैं, और वो भी बिना ओपन-हार्ट सर्जरी के। इन प्रक्रियाओं ने उपचार के परिणामों में सुधार किया है। 

 

यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट और एचओडी डॉ. परवीन मैंदीरत्ता ने सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में रोबोटिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताते हुए कहा, “सर्जिकल ऑन्कोलॉजी में रोबोटिक्स ने कैंसर उपचार को बहुत बदल दिया है। यह प्रिसिजन में वृद्धि, रिकवरी टाइम में कमी और परिणामों में सुधार प्रदान करता है। रोबोटिक सर्जरी से जटिल प्रक्रियाओं को आसान तरीके से कम आक्रमकता के साथ किया जा सकता है, जो इलाज में बेहद फायदेमंद साबित हो रहा है। 

यथार्थ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, ओमेगा 1, ग्रेटर नोएडा के किडनी प्रत्यारोपण एवं रोबोटिक सर्जरी विभाग केवरिष्ठ सलाहकार डॉ. विपिन सिसोदिया ने यूरोलॉजी में रोबोटिक्स के उपयोग की जानकारी दी। उन्होंने कहा, “यूरोलॉजी में रोबोटिक्स ने पारंपरिक प्रक्रियाओं को अत्यधिक सटीक और कम जटिल बना दिया है। यह तकनीक कैंसर और किडनी ट्रांसप्लांट जैसे मामलों में क्रांतिकारी बदलाव ला रही है।  


यथार्थ अस्पताल और आईएमए मुजफ्फरनगर के इस सहयोग को स्थानीय चिकित्सा समुदाय से अत्यधिक सराहना मिली। ऐसे प्रयास भविष्य में भी स्वास्थ्य सेवा को और अधिक उन्नत और प्रभावी बनाने के लिए जारी रखे जाएंगे।


December 18, 2024

मेनोपॉज अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है।

मेनोपॉज अंत नहीं, बल्कि है एक नई शुरुआत

मेनोपॉज महिलाओं के जीवन में एक स्वाभाविक जैविक बदलाव है, जो उनके प्रजनन काल के अंत को दर्शाता है। यह कोई बीमारी नहीं है, लेकिन इसके साथ होने वाले हार्मोनल और शारीरिक परिवर्तन कई स्वास्थ्य चुनौतियों को जन्म दे सकते हैं। ऐसे में महिलाओं के लिए यह समझना आवश्यक है कि कैसे इन बदलावों को प्रबंधित कर एक स्वस्थ और पूर्ण जीवन जिया जा सकता है। 


मेनोपॉज आमतौर पर 45 से 55 वर्ष की आयु के बीच होता है, जिसमें अंडाशयों की कार्य क्षमता में गिरावट के कारण मासिक चक्र समाप्त हो जाता है। इस दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन जैसे महत्वपूर्ण हार्मोनों का स्तर गिर जाता है, जिसके परिणामस्वरूप हॉट फ्लैश, रात में पसीना आना, मूड स्विंग, थकान और नींद की समस्या जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। 

 

इसके अलावा, एस्ट्रोजन के स्तर में कमी से हड्डियों की ताकत कम हो सकती है, जिससे ऑस्टियोपोरोसिस और फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है। वहीं, हृदय स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है क्योंकि एस्ट्रोजन दिल की बीमारियों से बचाव करता है। इस दौरान वजन बढ़ना, मेटाबॉलिक परिवर्तन, डायबिटीज और हाइपरटेंशन का खतरा भी बढ़ जाता है। 

 

न्यूबेला सेंटर फॉर विमेंस हेल्थ की, निदेशक डॉ. गीता श्रॉफ ने बताया कि मेनोपॉज की चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटने के लिए जीवनशैली में बदलाव, नियमित चिकित्सा देखभाल और भावनात्मक समर्थन महत्वपूर्ण हैं। संतुलित आहार, जिसमें कैल्शियम, विटामिन डी और प्रोटीन शामिल हों, हड्डियों को मजबूत करता है, जबकि सब्जियां, फल, साबुत अनाज और स्वस्थ वसा हृदय स्वास्थ्य और वजन प्रबंधन में मददगार होते हैं। नियमित व्यायाम जैसे वॉकिंग, योग और वेट बियरिंग एक्सरसाइज न केवल हड्डियों को मजबूत करते हैं बल्कि मेटाबॉलिज्म और मानसिक स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाते हैं। 

 

पर्याप्त पानी का सेवन हॉट फ्लैश पर नियंत्रण और त्वचा की गुणवत्ता बनाए रखने में सहायक होता है। इसके अलावा, मेनोपॉज के बाद ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है, इसलिए नियमित स्वास्थ्य जांच, जैसे हड्डी घनत्व परीक्षण, लिपिड प्रोफाइल और ब्लड शुगर मॉनिटरिंग आवश्यक हैं ताकि इन समस्याओं का समय रहते प्रबंधन किया जा सके। 

 

डॉ. गीता ने आगे बताया कि मेनोपॉज़ अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है। यह जीवन के उस दौर का प्रतीक है जब महिलाएं खुद को प्राथमिकता दे सकती हैं और अपने स्वास्थ्य को नए सिरे से परिभाषित कर सकती हैं। सही जानकारी, संतुलित जीवनशैली और विशेषज्ञों की मदद से महिलाएं इस बदलाव को आत्मविश्वास के साथ अपना सकती हैं। 

 

मेनोपॉज को आत्मनिर्भरता, जागरूकता और सशक्तिकरण के अवसर के रूप में अपनाकर महिलाएं एक खुशहाल और रोग-मुक्त जीवन का आनंद ले सकती हैं।

December 17, 2024

क्या सर्दियों की ठंड आपके मूड को प्रभावित कर रही है?

क्या सर्दियों की ठंड आपके मूड को प्रभावित कर रही है?
 

सर्दियों के आगमन के साथ ही जहां एक ओर ठंडी हवा और त्योहारों की खुशी का माहौल होता है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के लिए यह मौसम, मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियां लेकर आता है। सैड, जो आमतौर पर सर्दियों के महीनों में होता है, एक प्रकार का अवसाद है जो दुनिया भर में कई लोगों को प्रभावित करता है।  


सर्दियों के दौरान दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं, जिससे प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश का संपर्क कम हो जाता है। ये परिवर्तन शरीर की जैविक घड़ी (सर्केडियन रिदम) को बाधित कर सकते हैं, जिससे मनोभाव और ऊर्जा स्तर में गिरावट सकती है। सैड की विशेषता है कि यह हर वर्ष एक विशेष मौसम, मुख्यतः सर्दियों, में अवसाद के लक्षणों के साथ प्रकट होता है। मौसमी भावात्मक विकार के बारे में जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए, तुलसी हेल्थकेयर के निदेशक और प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. गोरव गुप्ता ने बताया कि सैड से पीड़ित व्यक्ति अक्सर लगातार उदासी, गतिविधियों में रुचि को कमी, नींद की आदतों में बदलाव, अत्यधिक थकान, एकाग्रता में कठिनाई और भूख में बदलाव जैसी समस्याओं से जूझते हैं।  


हालांकि, इन लक्षणों को प्रमुख अवसाद विकार से मिलता-जुलता माना जा सकता है, लेकिन सैड के मामले में ये लक्षण मौसमी होते हैं और वसंत के आगमन के साथ कम हो जाते हैं। सैड के सटीक कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन यह माना जाता है कि सूर्य के प्रकाश की कमी शरीर की सर्केडियन रिदम और सेरोटोनिन और मेलाटोनिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर के असंतुलन को प्रभावित करती है। साथ ही, आनुवंशिक कारक, हार्मोनल बदलाव और पहले से मौजूद मानसिक स्वास्थ्य स्थितियां इसके जोखिम को बढ़ा सकती हैं। जो लोग पेशेवर मदद चाहते हैं, उनके लिए साइकोथेरेपी, विशेषकर कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (CBT), सैड के इलाज में प्रभावी है। यह नकारात्मक विचारों को पहचानने और उन्हें बदलने के लिए व्यक्ति को सशक्त बनाता है। गंभीर मामलों में, जहां लक्षण दैनिक कार्यक्षमता को बाधित करते हैं, वहां एंटीडिप्रेसेंट जैसी दवाइयां सुझाई जा सकती हैं।  


उचित उपचार के लिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श लेना महत्वपूर्ण है। डॉ. गोरव ने आगे बताया कि सैड के लक्षणों को प्रबंधित करने और सर्दियों के महीनों को सकारात्मक रूप से अपनाने के लिए कुछ प्रभावी उपायों में लाइट थेरेपी, बाहरी गतिविधियां, शारीरिक व्यायाम और माइंड-बॉडी प्रैक्टिस शामिल हैं। लाइट थेरेपी उज्ज्वल प्रकाश के संपर्क से सर्केडियन रिदम को संतुलित करती है और लक्षणों को कम करने में मददगार होती है। ठंड के बावजूद दिन के समय बाहर समय बिताने से प्राकृतिक सूर्य के प्रकाश के जरिए सेरोटोनिन का उत्पादन बढ़ता है, जो मनोदशा सुधारने में सहायक होता है।  


December 13, 2024

मोटापा और उससे जुड़ी समस्याओं का बैरिएट्रिक सर्जरी से दीर्घकालिक समाधान

मोटापा और उससे जुड़ी समस्याओं का बैरिएट्रिक सर्जरी से दीर्घकालिक समाधान

बहादुरगढ़ : मोटापा आजकल एक ऐसी समस्या बन चुकी है, जो कई गंभीर और घातक बीमारियों को जन्म देती है। भारत दुनिया में मोटापे के मामले में तीसरे स्थान पर है, अमेरिका और चीन के बाद। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, नींद संबंधी विकार, जोड़ों का दर्द, पीठ दर्द, उच्च कोलेस्ट्रॉल, फैटी लीवर, थायरॉयड विकार, पीसीओडी, बांझपन और कैंसर जैसी बीमारियां मोटापे से जुड़ी होती हैं।

 

बैरिएट्रिक सर्जरी वजन घटाने का एक प्रभावी तरीका है, जिसमें पेट के आकार को छोटा करना या आंतों के कुछ हिस्सों को बाईपास करके कैलोरी अवशोषण को नियंत्रित किया जाता है। यह प्रक्रिया केवल भोजन की खपत को सीमित करती है, बल्कि शरीर के मेटाबोलिज्म में भी बदलाव लाती है, जिससे मोटापे से जुड़ी बीमारियों में सुधार होता है।

 

मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, द्वारका के गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल, मिनिमल एक्सेस और बैरिएट्रिक सर्जरी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अरुण भारद्वाज का कहना है, "मोटापा केवल वजन का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह पूरे शरीर की कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। बैरिएट्रिक सर्जरी ने वजन कम करने और मोटापे से संबंधित समस्याओं को नियंत्रित करने में दीर्घकालिक सफलता प्रदान की है। यह सर्जरी केवल वजन घटाने में मदद करती है, बल्कि डायबिटीज, फैटी लीवर, नींद के विकार, गठिया और थायरॉयड विकार जैसी समस्याओं को भी प्रभावी रूप से सुधारती है। भारत में सबसे सामान्य बैरिएट्रिक प्रक्रियाओं में स्लीव गैस्ट्रेक्टॉमी, गैस्ट्रिक बाईपास और मिनी-गैस्ट्रिक बाईपास शामिल हैं। ये प्रक्रियाएं लैप्रोस्कोपिक और रोबोटिक तकनीक से की जाती हैं। इसके अलावा, इंट्रागैस्ट्रिक बैलून जैसी गैर-सर्जिकल प्रक्रियाएं भी उपलब्ध हैं, जिन्हें ओपीडी में किया जा सकता है।

 

हालांकि, यह समझना जरूरी है कि बैरिएट्रिक सर्जरी अन्य आम सर्जिकल प्रक्रियाओं जैसे पित्ताशय की पथरी या हर्निया ऑपरेशन जितनी ही सुरक्षित है। फिर भी, इसे एक बहु-आयामी दृष्टिकोण के तहत किया जाना चाहिए, जिसमें सर्जरी से पहले व्यापक स्वास्थ्य मूल्यांकन और रोगी का सही तरीके से अनुकूलन शामिल हो।

 

सफलता की दर व्यक्ति की जीवनशैली और प्रक्रिया के बाद डॉक्टर द्वारा सुझाई गई डाइट और व्यायाम पर निर्भर करती है। अधिकतर लोग बैरिएट्रिक सर्जरी के बाद दीर्घकालिक वजन घटाने और जीवनशैली में सुधार का अनुभव करते हैं। डॉ. भारद्वाज ने यह भी बताया, "यह सर्जरी एक साधन है, लेकिन सफलता का वास्तविक मापदंड आपकी जीवनशैली में बदलाव और मोटिवेशन है। सर्जरी के बाद स्वस्थ भोजन, नियमित व्यायाम और परिवार दोस्तों का सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है।"

 

मोटापे से निपटने के लिए बैरिएट्रिक सर्जरी एक दीर्घकालिक समाधान साबित हो सकती है। सही विकल्प चुनने के लिए विशेषज्ञ डॉक्टर से परामर्श लेना और सर्जरी के बाद स्वस्थ जीवनशैली को अपनाना अनिवार्य है।